Tuesday, February 19, 2013

Madhosh sama



>>>>> 
आज कलम रोकते हुए कुछ लिखने को जी चाहता है,
तुझे देखते हुए मर मिटने को जी चाहता है,

कुदरत ने तुझे कुछ सांचे में तराशा है कोई बता दे मुझे,
आज उसी सांचे में उतर जाने को जी चाहता है,

तेरी एक मुस्कान से खिल उठते है कई फूल,
वही एक फूल बनकर खिल उठाने को जी चाहता है,

माना हम नहीं है तेरी उन नश्क भरी अदाओं के कामिल,
माना हम नहीं है तेरी उन शहरी फिजाओं में सामिल,
लेकिन फिर भी उसमे गोते लगाने को जी चाहता है,

आज कलम रोकते हुए कुछ लिखने को जी चाहता है............... 
                                                      


मित्रों कृपया अपना बहुमूल्य टिप्पड़ी देकर हमारी इस लेखनी के बारें में हमें बताएं 
                                                आपका अपना शाश्वत

Sunday, February 17, 2013

Love you maa



>>>>> 

हे माँ अपने आँचल में मुझे पनाह दे दो,
अपने इस लाडले को थोड़ी सी जगह दे दो,
ऊब चूका हूँ दुनिया के सिकंजे से इसमें जीने की वजह दे दो...

माँ छुड़ाना न ऊँगली कभी भी मुझसे ,
मुरझा जायेगा तेरा फूल खिलते खिलते,
माँ छुपाया है तुने आँखों में इतने आंशु,
की सागर भी समां जाये इसमें हँसते हँसते....

मुझे याद हे माँ वो लोरी तुम्हारी,
मेरे पसंद का खाना और सुखी रोटी तुम्हारी,
आती है याद वो रातें तुम्हारी,
 वो बचपन की लोरी और बातें हमारी...

एक ममता की झलक के लिए तड़पता मै अब हूँ,
माँ रातो को जगकर बहकता मै अब हूँ...

माँ, पापा ने दिया हमको सुखों का साया,
अपनी भावनाओं को दबा कर हमें यहाँ तक पहुँचाया,
उनकी ऊँगली पकड़ने को तरसता मै अब हूँ,
माँ रातों को जागकर बहकता मै अब हूँ
माँ रातों को जागकर बहकता मै अब हूँ ....