Tuesday, February 19, 2013

Madhosh sama



>>>>> 
आज कलम रोकते हुए कुछ लिखने को जी चाहता है,
तुझे देखते हुए मर मिटने को जी चाहता है,

कुदरत ने तुझे कुछ सांचे में तराशा है कोई बता दे मुझे,
आज उसी सांचे में उतर जाने को जी चाहता है,

तेरी एक मुस्कान से खिल उठते है कई फूल,
वही एक फूल बनकर खिल उठाने को जी चाहता है,

माना हम नहीं है तेरी उन नश्क भरी अदाओं के कामिल,
माना हम नहीं है तेरी उन शहरी फिजाओं में सामिल,
लेकिन फिर भी उसमे गोते लगाने को जी चाहता है,

आज कलम रोकते हुए कुछ लिखने को जी चाहता है............... 
                                                      


मित्रों कृपया अपना बहुमूल्य टिप्पड़ी देकर हमारी इस लेखनी के बारें में हमें बताएं 
                                                आपका अपना शाश्वत

2 comments: